Chandrahaar (Hindi Drama)

चन्द्रहार

Fiction & Literature, Drama, Eastern, Nonfiction, Entertainment
Cover of the book Chandrahaar (Hindi Drama) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द, Bhartiya Sahitya Inc.
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Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द ISBN: 9781613011492
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: November 30, 2011
Imprint: Language: Hindi
Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
ISBN: 9781613011492
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: November 30, 2011
Imprint:
Language: Hindi
‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्यरूपांतर’ है। हिन्दी पाठकों के सुपरिचित एकांकी नाटककार श्री विष्णु प्रभाकर के मूल उपन्यास की कथावस्तु, पात्र और संवादों को सुरक्षित रखते हुए जालपा के आभूषणप्रेम और रमानाथ के मनोवैज्ञानिक चरित्रचित्रण की कहानी को बड़ी की कुशलता, कलात्मकता और सफलता से नाटक का परिधान पहनाया है। उपन्यासों को रंगमंच के लिए उपयोगी नाटकों में परिवर्तित करने की कला यूरोप और अन्य देशों में अत्यधिक प्रचलित होते हुए भी हिन्दी में यह प्रयत्न सम्भवत: पहला ही है। रूपांतरकार ने रंगमंच की आवश्यकताओं और विशेषताओं का प्रस्तुत नाटक में पूरापूरा ध्यान रखा है, फिर भी जहाँ तक पढ़कर आनन्द लेने का प्रश्न है, इसके रस प्रवाह में कोई बाधा नहीं आने पायी है। आशा की जाती है कि हिन्दी के विरल नाटकसाहित्य में और विशेषकर अभिनयोपयोगी नाटकों की दिशा में ‘चन्द्रहार’ एक विनम्र पूर्ति प्रमाणित होगा। और ‘ग़बन’ को नाटक के रूप में प्राप्त कर हिन्दी के पाठक, विचारक और लेखक सभी प्रसन्न होंगे।
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‘चन्द्रहार’ हिन्दी के अमर कथाकार प्रेमचन्द के सुप्रसिद्ध उपन्यास ‘ग़बन’ का ‘नाट्यरूपांतर’ है। हिन्दी पाठकों के सुपरिचित एकांकी नाटककार श्री विष्णु प्रभाकर के मूल उपन्यास की कथावस्तु, पात्र और संवादों को सुरक्षित रखते हुए जालपा के आभूषणप्रेम और रमानाथ के मनोवैज्ञानिक चरित्रचित्रण की कहानी को बड़ी की कुशलता, कलात्मकता और सफलता से नाटक का परिधान पहनाया है। उपन्यासों को रंगमंच के लिए उपयोगी नाटकों में परिवर्तित करने की कला यूरोप और अन्य देशों में अत्यधिक प्रचलित होते हुए भी हिन्दी में यह प्रयत्न सम्भवत: पहला ही है। रूपांतरकार ने रंगमंच की आवश्यकताओं और विशेषताओं का प्रस्तुत नाटक में पूरापूरा ध्यान रखा है, फिर भी जहाँ तक पढ़कर आनन्द लेने का प्रश्न है, इसके रस प्रवाह में कोई बाधा नहीं आने पायी है। आशा की जाती है कि हिन्दी के विरल नाटकसाहित्य में और विशेषकर अभिनयोपयोगी नाटकों की दिशा में ‘चन्द्रहार’ एक विनम्र पूर्ति प्रमाणित होगा। और ‘ग़बन’ को नाटक के रूप में प्राप्त कर हिन्दी के पाठक, विचारक और लेखक सभी प्रसन्न होंगे।

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